सियाह-नील-सुर्ख़: रंगों को कैसे जस्टिफ़ाई करती हैं भवेश दिलशाद की ग़ज़लें?

भवेश दिलशाद की ग़ज़लों की ट्रायोलॉजी 'सियाह', 'नील' और 'सुर्ख़' कुछ वक्त पहले पढ़ने का अवसर मिला. सबसे पहले जिस चीज़ ने मुझे आकर्षित किया वो थे इन किताबों के शीर्षक. तीन रंग सियाह, नील और सुर्ख़. जैसे यह एक यात्रा हो रंगों की जो क्रमशः पहले सफेद-काले और धूसर रंगों में खेल रही हो, फिर जीवन के कुछ और रंगों के घुलने-मिलने से कुछ और विराट होते हुए नील हुई और फिर अपने पूरे उफ़ान और शबाब में सुर्ख़ हुई.

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सियाह-नील-सुर्ख़: रंगों को कैसे जस्टिफ़ाई करती हैं भवेश दिलशाद की ग़ज़लें? सियाह-नील-सुर्ख़: रंगों को कैसे जस्टिफ़ाई करती हैं भवेश दिलशाद की ग़ज़लें? Reviewed by writer on July 01, 2024 Rating: 5

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